Bihar News : सांसों की डोर टूटी तो पहाड़ तोड़ डाला, छेनी हथौड़ी से लिख डाली प्रेम गाथा की अनंत कहानी, जानिए दशरथ मांझी और फगुनिया की प्रेम कहानी

गया न्यूज : बिहार के गया के गहलौर घाटी की वादियों में अमर प्रेम कहानी की गाथा की गूंज है. यहां छेनी हथौड़ी से प्रेम की अनंत कहानी लिखी गई. एक ऐसी कहानी जो सबसे अलग है, और सदियों तक याद रखी जाएगी. वर्तमान परिवेश में जहां प्यार की परिभाषा के विकृत रूप सामने आ रहे हैं. वहीं गहलौर घाटी की यह प्रेम कहानी निश्चल समर्पण और और प्यार की गहराइयों से पिरोई हुई है.
ऐसा जुनून और कहां..
प्यार की यह अद्भुत कहानी बिहार के गया जिले के गहलौर की है. गहलौर के दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी के प्रेम में ऐसा जुनून दिखाया कि दुनिया हैरान रह गई. गया के पहाड़ी क्षेत्र के गहलौर गांव की यह कहानी आज प्यार करने वालों के लिए एक उदाहरण है. साथ ही यह परिभाषा भी, कि सच्चा प्रेम क्या होता है। दशरथ मांझी ने पत्नी के प्रेम में 22 वर्षों तक छेनी हथौड़ी चलाकर प्रेम की सच्ची परिभाषा की बड़ी गाथा लिख दी, जो सदियों तक अमर प्रेम कहानी के रूप में जानी जाती रहेगी.
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यहां प्रेम की परिभाषा समझने आते हैं लोग, करते हैं नमन
गया के गहलौर घाटी की पहचान आज देश ही नहीं, बल्कि विदेश तक है. गहलौर घाटी में प्रेम की परिभाषा को समझने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं. देश विदेश से आने वाले यहां की प्रेम कहानी जानकर हैरान रह जाते हैं. ऐसी अद्भुत प्रेम कहानी की पटकथा लिख देने वाले दशरथ मांझी के समाधि स्थल को नमन करना नहीं भूलते. कई तो ऐसे हैं, जो इस प्रेम कहानी को शाहजहां और मुमताज की प्रेम के प्रतीक ताजमहल से भी बड़ा मानते हैं.
पत्नी का घड़ा फूटा, चोट लगी और फिर मौत.. तो पहाड़ ही काट डाला
दशरथ मांझी की प्रेम कहानी 1959 से जुड़ी है. दशरथ मांझी एक मजदूर थे. पहाड़ों पर जाकर काम करते थे. पत्नी फाल्गुनी देवी उनके लिए रोज उबड़ खाबड़ पहाड़ के रास्ते खाना और पानी लेकर आया करती थी. तब वर्ष 1959 का एक दिन था, जब नित्य दिन की तरह पत्नी फाल्गुनी देवी अपने पति दशरथ मांझी के लिए खाना और पानी लेकर पहाड़ के रास्ते जा रही थी. उसी वक्त उनका पैर फिसला. घड़ा फूटा और गंभीर चोट लगी. तब उस समय नजदीक का अस्पताल करीब 55 किलोमीटर दूर था. उनकी पत्नी को सही समय से इलाज नहीं मिला और फाल्गुनी की मृत्यु हो गई. इस घटना से बाबा दशरथ मांझी काफी आहत हुए. दशरथ मांझी अपनी पत्नी फाल्गुनी से बेहद प्रेम करते थे. पत्नी फाल्गुनी की मौत से दशरथ मांझी इस कदर व्यथित हुए, कि उन्होंने दृढ संकल्प ले लिया.
22 सालों तक छेनी हथौड़ी चलाकर पहाड़ काट दी, लिख दी प्रेम की अनोखी कहानी
पत्नी से दिलो जान से प्रेम करने वाले दशरथ मांझी ने फाल्गुनी की मौत के बाद दृढ़ संकल्प लिया, कि वे पहाड़ काटकर रास्ता बनाएंगे, क्योंकि उनकी पत्नी की मौत सही समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण हुई थी. ऐसे में उन्होंने यह दृढ संकल्प अपनी पत्नी प्रेम और समाज के प्रेम के बीच लिया, क्योंकि उन्हें लगा कि एक नहीं हजारों फाल्गुनी को ऐसी परिस्थितियों से सामना करना पड़ता होगा. बस फिर क्या था, बाबा दशरथ मांझी ने छेनी हथौड़ी उठाई और पहाड़ को काटना शुरु कर दिया. दिन, सप्ताह, महीने, 1 साल नहीं बल्कि पूरे 22 साल तक छेनी और हथौड़ी पहाड़ को काटने के लिए चलाई.
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22 सालों तक छेनी हथोड़ी की मदद से बना दिया सुगम रास्ता
बाबा दशरथ मांझी ने गहलौर घाटी के 360 फीट ऊंचे पहाड़ को छेनी हथौड़ी की मदद से 22 सालों में काट डाला. इसके बाद तकरीबन 30 फीट चौड़ा रास्ता तैयार कर दिया, जहां कभी पहाड़ अपना सीना ताने रहता था, वहां बाबा दशरथ मांझी ने सिर्फ छेनी हथौड़ी की मदद से पहाड़ को काटकर सुगम रास्ता बना दिया था. इस रास्ते के बनने से जो दूरी 55 किलोमीटर की थी, वह मात्र 15 किलोमीटर से भी कम रह गई थी.
दृढ़ संकल्प पूरा करने के बाद पैदल दिल्ली तक गए
पत्नी प्रेम और समाज के हित में 22 सालों का दृढ संकल्प पूरा करने के बाद दशरथ मांझी माउंटेन मैन के रूप में जाना जाने जाते थे. वे यही नहीं रुके, समाज के मुद्दों पर सरकार का नजर लाने के लिए वह दिल्ली तक पैदल यात्रा पर भी निकल गए. इसके बाद वे मीडिया की सुर्खियों में आए और तब प्रेम की अनूठी परिभाषा गढने वाले दशरथ मांझी पूरी तरह से चर्चा में आ गए थे. यही वजह रही कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें पुरस्कृत किया. इतना ही नहीं उनके नाम से डाक टिकट भी जारी हुआ. अस्पताल और पुलिस स्टेशन बने. समाज के विकास पूरक कई योजनाएं चली. उनकी जीवनी पर कई फिल्में भी बनी. बाबा दशरथ मांझी का निधन 17 अगस्त 2007 को नई दिल्ली एम्स में हुआ था. बिहार सरकार ने 'राज्य सम्मान' के साथ अंतिम संस्कार कराया था.
तीन बकरियां बेचकर खरीदी थी छेनी हथौड़ी, जाने माउंटेन मैन दशरथ मांझी के पुत्र की जुबानी यह प्रेम कहानी
आज हम माउंटेन मैन दशरथ मांझी के प्रेम कहानी उनके पुत्र भागीरथ मांझी की जुबानी सुनवा रहे हैं. भागीरथ मांझी ने कुछ ऐसी बातें बताई, जो वास्तव में हैरान कर देने वाली थी. बाबा दशरथ ने पत्नी की मौत के बाद जो छेनी हथौड़ी खरीदी, वह अपनी तीन बकरियां को बेचकर लिया था. इसके बाद बकरी बेच कर खरीदी गई छेनी हथौड़ी से अपने दृढ़ संकल्प को पूरा करने के में जुट गए. अनवरत 22 सालों तक उनका छेनी हथौड़ा चला और पहाड़ का गुरूर तोड़कर सुगम रास्ता बना दिया. भागीरथ मांझी बताते हैं, कि उनकी मां फाल्गुनी देवी पिता दशरथ मांझी को रोज की तरह खाना और पानी पहुंचाने जा रही थी, कि एक दिन वह पहाड़ के पत्थर से टकराकर गिरी. घड़ा फूटा, चोट लगी और फिर मौत हो गई.
इसके बाद मेरे पिता दशरथ मांझी ने तीन बकरी बेचकर छेनी हथौड़ी खरीदी और बिना किसी की मदद के अकेले ही 22 सालों तक गहलौर पहाड़ से खुद लड़ते रहे और फिर सुगम रास्ता बनाकर ही दम लिया, जिससे 55 किलोमीटर की दूरी अब 15 किलोमीटर रह गई है और आज लाखों लोगों के लिए यह सड़क है. मां फाल्गुनी के प्रेम में बाबा दशरथ ने छेनी हथौड़ी उठाई थी. आज यह प्रेम का बड़ा उदाहरण है. बाबा दशरथ ने यह भी सोचा, कि हमारी एक फाल्गुनी ही नहीं, इससे कई ऐसी हजारों फाल्गुनी पीड़ित होगी. वे फाल्गुनी से अकूत प्रेम तो करते ही थे, समाज के लोगों को भी काफी प्यार करते थे. आज समाज के लाखों लोगों के लिए यह सड़क है.
शाहजहां की कहानी भी हो जाती है फेल
वहीं प्रेम की परिभाषा गढने वाले गहलौर घाटी को देखने पहुंचे सूर्य देव विश्वकर्मा बताते हैं, कि यह शाहजहां की कहानी को भी फेल कर देता है. बाबा दशरथ ने अपनी पत्नी प्रेम में ऐसा असंभव कार्य किया, यह सचमुच हैरान करने वाली है. इस स्थल को देखकर उन्हें काफी कुछ सीखने का मौका मिला. प्रेम क्या होता है, यह भी जाना. शाहजहां ने तो कारीगरों की मदद से ताजमहल बनवाया था, लेकिन बाबा दशरथ मांझी ने अकेले छेनी हथौड़ी अनवरत कई सालों तक चलाकर पहाड़ को ही काट कर रास्ता बना दिया. पत्नी प्रेम की यह अनूठी मिसाल है.
आमिर खान से लेकर बड़ी-बड़ी राजनीतिक हस्तियां पहुंची
प्रेम की अद्भुत परिभाषा गढने वाले दशरथ मांझी के निधन के बाद गहलौर घाटी में आमिर खान से लेकर एक से एक बड़ी सिने हस्तियां पहुंची. वहीं, कई राजनीतिक दलों का लगातार आना हुआ. केंद्र और राज्य की सत्ता में रहे हस्तियां भी गहलौर घाटी को पहुंचे. हालांकि बाबा दशरथ के परिजनों की हालत आज भी नहीं बदली है. आज भी फूस की झोपड़ी में ही माउंटेन मैन का परिवार निवास करता है. हालांकि, परिवार के लोग इतने संतुष्ट हैं, कि वह किसी भी सरकार के खिलाफ कुछ बोलना नहीं चाहते. वही, मलाल यह जरूर है, कि बाबा दशरथ मांझी को अब तक भारत रत्न नहीं मिल पाया.